बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
उत्तर -
भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता
जाति व्यवस्था पर आधारित भारतीय समाज ने अनेक विदेशी और भारतीय समाजशास्त्रियों का ध्यान आकृष्ट किया है। जाति एक बंद कोटि वाला संवर्ग है जिसके कारण गतिशीलता बाधित होती रही है। बेरमेन और जॉनसन ने भारतीय समाज को बंद समाज का कठोर उदाहरण माना है क्योंकि जाति व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्ति को पूरे जीवन भर एक ही सामाजिक स्थिति में रहना पड़ता है। जाति व्यवस्था पर आधारित समाज बंद समाज का उदाहरण है वहीं वर्ग व्यवस्था पर आधारित समाज खुले समाज हैं उदाहरणार्थ अमेरिकी समाज। जॉनसन का मानना है कि बंद व खुले समाज की अवधारणा सैद्धान्तिक द्विध्रुवीय विभाजन है क्योंकि न तो भारतीय समाज पूरी तरह बंद समाज है और न ही अमेरिकी समाज पूरी तरह खुला समाज है। बंद समाज की कुछ विशेषताएँ अमेरिकी समाज में देखने को मिलती हैं, तो खुले समाज की कुछ विशेषताएँ भारतीय समाज में भी देखने को मिलती हैं।
प्राचीन समय में भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था तब निश्चित रूप से इसमें खुलापन था। पूर्व वैदिक काल में योग्यता व गुणों के आधार पर व्यक्तियों के वर्ण में परिवर्तन होता था। बंटवारे के आधार पर समाज के स्तर कठोर नहीं थे। उत्तर वैदिक काल से लेकर लगभग 19वीं सदी के पूर्वान्ह तक भारतीय समाज को बंद समाज का सबसे सटीक उदाहरण माना जा सकता है। इस काल में समाज जाति व्यवस्था से इतना ग्रसित था कि सामाजिक गतिशीलता दिवा स्वप्न जैसी थी। निम्न जाति का व्यक्ति ऊँची जाति की सामाजिक हैसियत और सम्मान को नहीं पा सकता था। भारतीय समाज में जड़ता का कारण मात्र ब्राह्मणवादी हिन्दू दर्शन ही नहीं है बल्कि इस्लामी समाज के साथ संसर्ग भी है। मुस्लिम शासन काल में भारतीय समाज की जड़ता को काफी बढ़ावा मिला। यह सही है कि इस्लामी समाज समानता पर आधारित है लेकिन इस्लाम को मानने वालों का अपने व गैर-मजहबों के प्रति ऐसा ख्याल व व्यवहार रहा कि प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू समाज में काफी जड़ता आ गयी।
जाति व्यवस्था का स्वरूप ऐसा है कि उसमें गतिशीलता की सम्भावना ही नहीं बनती। आज भारत में जो जाति व्यवस्था में गतिशीलता दिखाई देती है, वह गतिशीलता जाति व्यवस्था में नहीं बल्कि मुख्य रूप से वर्ग व्यवस्था में है। आधुनिक भारत में जाति व्यवस्था के ऊपर वर्ग व्यवस्था अध्यारोपित हो गयी है और परिवर्तन उसी अध्यारोपित व्यवस्था में हो रहा है जिसे भारत के अधिकांश मानवशास्त्री व समाजशास्त्री गतिशीलता के रूप में विश्लेषित करते हैं।
अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय सामाजिक स्तरण में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति, नई प्रशासनिक व्यवस्था एवं नई कानूनी व्यवस्था को भारत में लागू किया। उनके सारे नियम कानून व जीवन के मूल्य काफी हद तक सामाजिक समानता के मूल्य पर आधारित थे। अतः पश्चिमीकरण के कारण भारत में क्रांतिकारी व युगान्तकारी परिवर्तन आया। पश्चिमी मूल्यों के कारण ही भारतीय समाज जो कि जाति मूलक समाज था वर्ग व्यवस्था से प्रभावित होकर खुलेपन की सांस लेने लगा।
1950 में गणतंत्र की स्थापना के बाद भारत नए संविधान के आलोक में समतामूलक समाज की ओर बढ़ने लगा। भारत के इतिहास में यह काल विशेष महत्व रखता है क्योंकि संविधान के अंतर्गत हर व्यक्ति को बढ़ने का समान अवसर मिला। मौलिक अधिकारों की बात की गई ताकि प्रत्येक नागरिक अपनी योग्यता, गुण व परिश्रम के आधार पर समाज में आगे बढ़ सके।
वर्तमान भारत में औद्योगिकीकरण, नगरीकरण आधुनिकीकरण एवं नई वैधानिक व्यवस्था ने संयुक्त रूप से जाति व्यवस्था पर गहरा आघात किया है। कार्यस्थल, विद्यालय व महाविद्यालय में सभी उच्च व निम्न जाति के लोग समान रूप से सहभाग कर रहे हैं। जाति की महत्वपूर्ण विशेषता अंतर्विवाह, अंतर्जातीय विवाहों के कारण खत्म हो रही है। एम० एन० श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत संस्कृतिकरण की अवधारणा सामूहिक गतिशीलता को निर्धारित कर रही है। संस्कृतिकरण का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा निम्न जातीय व जनजातीय लोग, उच्च जातियों की जीवनशैली का अनुसरण कर समाज के उच्च स्तर में पहुँचने का दावा करने लग जाते हैं।
सामाजिक गतिशीलता प्रादेशिक स्तर पर असमान है परन्तु कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। उदाहरण के लिए, गाँव की तुलना में शहरी क्षेत्रों में गतिशीलता अधिक तीव्र देखी जा सकती है। शहरों में लोग अब जाति की उच्चता पर उतना विचार न कर व्यक्ति के पद या व्यवसाय के आधार पर समाज में उनकी स्थिति के बारे में विचार करते हैं। इस प्रकार के खुलेपन को जेम्स सिल्वबर्ग ने भी अपने अध्ययनों में स्वीकार किया है। उसके अनुसार भारत अब बन्द समाज नहीं रह गया है। यह सत्य है कि पाश्चात्य देशों की तुलना में यहाँ गतिशीलता कम है परन्तु उसकी तुलना इस देश के किसी भी ऐतिहासिक काल से नहीं की जा सकती।
भारतीय समाज में गतिशीलता के प्रमुख निर्धारक
भारतीय समाज में गतिशीलता के प्रमुख निर्धारक इस प्रकार हैं-
(1) अंग्रेजी के आगमन के साथ यहाँ औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई। नए पेरी उत्पन्न हुए जो जाति व्यवस्था के मूल में नहीं थे। इस पेशों के लिए योग्यता के आधार पर लोगों का चयन किया जाने लगा फलत: जाति व पेशा का परम्परागत सम्बन्ध बिखर गया।
(2) नगरीकरण के विस्तार के साथ-साथ संचार व यातायात साधन बढ़े। विभिन्न जाति व धर्म के लोग एक जगह रहने लगे। लोग एक साथ यात्रा करने लगे। लोगों के बीच की सामाजिक दूरी खत्म होने लगी। शहरी क्षेत्रों में वर्ग व्यवस्था की स्थापना होने लगी और वर्ग व्यवस्था जाति व्यवस्था पर आध्यारोपित होने लगी।
(3) आधुनिक शिक्षा का आधार वैज्ञानिक चिंतन है अतः इसके द्वारा समतामूलक एवं विकासोन्मुखी समाज को बढ़ावा मिलना स्वाभाविक है। योगेन्द्र सिंह का मत है कि शिक्षा भारत में आधुनिकीकरण के सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधनों में से एक है। शिक्षा ने जनता की राष्ट्रवाद, उदारता एवं स्वतंत्रता जैसी आकांक्षाओं को गतिशील किया। भारत में शिक्षा ने विद्यार्थियों की एक उपसंस्कृति का निर्माण किया जो पूरी तरीके से आधुनिक से नहीं है परन्तु परंपरा से आधुनिकता के संक्रमण को दर्शाती है।
(4) भारत में कानूनी व संवैधानिक प्रयासों ने भी गतिशीलता को प्रेरित किया है। अस्पर्श्यता को 1955 में कानूनी रूप से समाप्त कर दिया गया। जाति, धर्म, लिंग व जन्म स्थान के भेदभाव को संविधान ने गैर कानूनी ठहरा दिया। दलितों व पिछड़ों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें भी विकास की दौड़ में आगे निकलने का अवसर दे दिया गया।
(5) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के कारण यहाँ गतिशीलता तीव्र हुई क्योंकि पश्चिमी मूल्य काफी हद तक समतावादी व प्रजातांत्रिक रहे। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के माध्यम से जातीय गतिशीलता सम्भव हो सकी। संस्कृतिकरण की अवधारणा ने जातिगत सोपान में उच्च जातियों व निम्न जातियों के बीच की दूरी को कम करके उन्हें गतिशील होने का अवसर दिया है। इस प्रक्रिया के माध्यम से निम्न जातियाँ समाज के उच्च स्तर में पहुँचने का प्रयास करती हैं।
वर्तमान भारत बंद समाज व्यवस्था से खुले समाज व्यवस्था की ओर तीव्र गति से अग्रसर है, ऐसे में गतिशीलता का बनना स्वाभाविक है। जैसे-जैसे विकास की दर तीव्र होगी, उदारीकरण व विश्व व्यापारीकरण बढ़ेगा वैसे-वैसे खुलापन भी बढ़ता जाएगा और सामाजिक गतिशीलता के अवरोध भी खत्म होते जाएँगे।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
- प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
- प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
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- प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
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